Saturday, 6 May 2017

नेहरू जी का गलत फैसला

कश्मीर समस्या नहीं यह तो गाथा है नेहरु की कमजोरी की और बापू की मजबूरी की
तख्ते सिंहासन नेहरू की जगह सरदार पटेल बैठे होते कश्मीरी समस्याओं को छोड़ो बलूची तिब्बती अफगानी नेपाली भूटानी भी अपने होते
अमर तिरंगा लहराता लाहौर की धरती पर जो सन् 48 को नेहरु युद्ध विराम की घोषणा नहीं करे होते

मैं पूछता हूं जो जरूरत ना थी कश्मीर को धारा 370 देने की
क्या जरूरत आन पड़ी थी मिट्टी को मिट्टी से अलग दिखाने की
समय रहते नेहरू जी तुमने सीमा विवाद सुलझा लिए होते
तो आज सरहदों पर बेटे बेवजह नहीं मर रहे होते

मैं पूछता हूं क्या मिला पंचशील के समझौते से
आज भी चीन आंखें हमारी और तारेरता है इस समझौते से हम को कमजोर और खुद को बलवान समझता है
समय रहते मेकमोहन को अपना सीमा क्षेत्र नेहरु जी आपने बता दिया होता तो अरुणाचल कश्मीर की धरती पर यह चीनी तांडव नहीं होता

हर्ष लाहोटी (कोण्डागाँव-बस्तर)
9589333342

Sunday, 30 April 2017

मै श्रमिक हूँ


शीर्षक :- मै श्रमिक हूँ

संदर्भ :- प्रस्तुत कविता देश के उस वर्ग के लिए है जो वास्तव मै देश का निर्माण करता है परंतु हमेशा छला जाता है.........आशा करता हूँ पसंद आए.... ।

कविता :-
हाँ मै श्रमिक हूँ
देश का सारा बोझ उठाता हूँ
कोल्हू के बैल की तरह जोता जाता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
धन बल से मै ठगा जाता हूँ
अक्सर अकारण छला जाता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
दो रोटी के लिए पैसा कमा कर
बमुश्किल घर खर्च चलाता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
ऊँची लंबी इमारतें बनाता हूँ
पर सारी जिंदगी झुग्गी मै गुजार जाता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
धरती खोद कर सोना निकाल कर लाता हूँ
पर कभी उस सोने को भोग नहीं पता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
भरी दोपहरी मै पसीने से तरबतर बोझ उठाता हूँ
पर चंद पैसो के लिए भी छला जाता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
कुछ खाने भूक मिटाने
मै झुटे बर्तन मांज लेता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
पढ़ा लिखा कम हूँ इसलिए
अक्सर अपने हक की लड़ाई हार जाता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
मेरी कोई जाति नहीं
मै असली हिंदुस्तान कहलाता हूँ

हाँ मै श्रमिक हूँ
देश के हर निर्माण मे भागीदार हूँ पर
पलट कर जब भी पीछे देखता हूँ खूद को अकेला पाता हूँ


हर्ष लाहोटी (कोण्डागाँव-बस्तर)
9589333342
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Wednesday, 26 April 2017

आत्महत्या करता किसान


शीर्षक :- आत्महत्या करता किसान

संदर्भ :- ]भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है तथा मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि परिस्तिथियाँ, समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फँसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएँ की है | इस विषय पर लिख रहा हूँ आशा है आप को पसंद आए.............

कविता :-

 किसान :-

माँ धरती फट गईहै,मानसून की राह तख्ते
फसले जल गई है रवि केतेज निगाह के चलते
घर में खाने को नहीं  बचा है एक भी कण
कर्ज के बोझ से दबा अब कर्जदाता कसने लगे तंज
मवेशी भी अब भूके है खेत खलिहान सब सूखे है
पानी का संकट आन पड़ा है पानी के सभी पोखर सूखे है
मेरा दुःख नहीं देखता कोई नेता 
कोई मिडिया भी नहीं खोज खबर लेता
हल से भी नहीं निकलता अब हल
अब नहीं काम का बखर
अब धक गया हूँ माँ अब हार गया हूँ
अब कोई रास्ता बाकि नहीं है
आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं है


 भारत माता :-

रुक तू रुक जा आत्म हत्या कोई चारा नहीं
तेरे घर का तेरे अलावा कोई सहारा नहीं
तेरी मौत का दर्द बूढी माँ पत्नी बच्चे नहीं सह पायंगे
अभी तो जैसे तैसे जिन्दा है वे लोग
तेरी मौत से जीते जी मर जायंगे
कुछ दिनों में मौसम करवट बदलेगा
घनघोर बारिश होगी भर जायंगे सारे पोखर
तू माटीपुत्र है हार न मान
जीवन एक रण है उसे डट के लड़
हौसला रख ऐसा की हौसला किस्मत का भी पस्त हो
कमजोर नहीं तू बस इतना याद रखना
मेरी धरती उर्वर है बंजर नहीं ये याद रखना



हर्ष लाहोटी
(9589333342)
(hlahoti20@gmail.com)

संयुक्त-कूटम्ब



शीर्षक :- संयुक्त-कूटम्ब

संदर्भ :- प्रस्तुत कविता कुछ महीनों पूर्व मित्र के संयुक्त परिवार के हो रहे बंटवारे को देख लिखी है शायद आपको पसंद आए और भारत की शक्ति कही जाने वाली संयुक्त परिवार की प्रथा पुनर्जीवित हो सके लीजिए मां भारती से प्रश्न करती की कविता

कविता :-
की माँ भारती तू ही बता की तेरा वो उज्जवल सबेरा ओर चांदनी शाम कैसे वापस कैसे लौटाऊ
 जहां दादा-दादी ताऊ ताई बापू माई रहते थे मैं वह पुराना कुटुम्ब  कैसे बनाऊं

जो परिवार वट वृक्ष सा हरिहर खुशहाल हुआ करता था
आज पतझड़ के पत्तों सा बिखरा सुखा सा है
मां तू ही बता उस सूखे वृक्ष में नहीं कपोल कैसे प्रस्फुटित कराऊं

जिस धरती पर गूंजते थे वासुधैव कुटुंबकम के नारे
आज वहां कुटुंबों में होते हैं बंटवारे
मां भारती तू ही बता यह बंटवारा रुकती स्वर्ग सम माहौल कैसे बनाऊं

जिस आंगन में बैठ कर सब साथ में भोजन किया करते थे
आज उस आंगन में लंबी दीवारें खड़ी हैं
मां भारती तू ही बता इस कठोर दीवार को चीरती दहाती दरार कहां से लाऊं

जिन बुजुर्गों से एक बच्चे किस्से कहानियां सुना करते थे
आजकल वह घर से दूर आश्रम में रहा करते हैं
मां भारती तू ही बता इन बुजुर्गों की अमर किस्से कहानियां नई पीढ़ी को कैसे मैं सुनाऊं

जिस घर की चारदीवारी पर बच्चे अठखेलियां किया करते थे
आज उस घर की चौखट पर भी सन्नाटा पसरा है
 मां भारती तू ही बता उस सन्नाटे को चीरती नन्हीं मुस्कान कहां से लाऊं

एक समय था जब परिवार में प्रेम उत्साह का माहौल हुआ करता था
पर अब वह समय है जहां द्वेष-राग ओर केवल चीखे है
माँ भारती तू ही बता वह द्वेष-राग भुलाता पुराना समय कैसे लौटाऊ

जहां हर शाम त्यौहारों सी खुशहाल हुआ करती थी
आज त्यौहार की शाम साथ बैठने का समय नहीं
मां भारती तू ही बता दो त्योहारों से लाज भरी शाम कैसे वापस बनाऊं

हर्ष लाहोटी
(9589333342)
(hlahoti20@gmail.com)

हुँकार


शीर्षक :- हुँकार

कविता:-

                     बंद पड़े हथियारों आयुधो भरो
                     करे कम्पन दुश्मन के ह्रदय
                     सरकार अब तुम ललकार भरो
                     रण करो अब हुँकार करो

                                                       सेना को अब अधिकार दो
                                                       मानवअधिकारियों को लगाम दो
                                                       जो पत्थर फेके उसे लाल चोंक पे लटका दो
                                                       हथियार दिखाए उसे वही मार दो

                    बस्तर हो या कश्मीर
                    सेना को अब तैयार करो
                    घर के दुश्मन पर अब वार करो
                    फिर सीमा का रुख अख्तियार करो

                                                        रणकुम्भो रण में असीमित अधिकार दो
                                                        यदि कम पड़े लड़ने को बाजु
                                                        संविधान को रख किनारे
                                                        आम नागरिको को भी हथियार दो

                    नहीं बचेंगे दुश्मन देश
                    बस अब ये शांति का प्रतिकार करो
                    सरकार अब तुम ललकार भरो
                    रण करो अब हुँकार करो

                                          
                                           हर्ष लाहोटी (बस्तर)
                                            (9589333342)
                                     (hlahoti20@gmail.com)


Tuesday, 25 April 2017

एक ख़त घर आया था


शीर्षक :- एक ख़त घर आया था

कविता :-
               बंद लिफाफे में एक ख़त घर आया था
                                   वतन की मिट्टी की महक से सारा घर महकाया था
           
                देश के पहरेदार का परिवार को पैगाम आया था
                                    खत में सिर्फ भारत माता की जय लिख पाया था

               प्यार के बोल मै भी बारूद की खुशबू थी
                                    मर्दानी पत्नी को ये खत बहुत भाया था
           
               माँ-.पिता  को प्रणाम के बदले वो भारत भूमि की जय लिख पाया था
                                      गर्व से प्रफुलित था माँ बाप का सीना उसका बेटा वतन के काम आया था

              बच्चो को आशीर्वाद दे उसने अपना फर्ज निभाया था
                                       बच्चो को ख़त में उसने मातृभूमि का महत्व समझाया था
           
               बंद लिफाफे में एक ख़त घर आया था
                                        वतन की मिट्टी की महक से सारा घर महकाया था



                                                              हर्ष लाहोटी
                                                           (9589333342)

फौजी की पत्नी

शीर्षक :- फौजी की पत्नी 

संदर्भ :- प्रस्तुत कविता देश की रक्षा मे लगे सैनिक (जिसकी कुछ दिनो पहले शादी हुई हैं) की पत्नी की मनो दशा है जो ... आशा है कि आप को पसंद आए गी....... 

कविता :- 

तुझ संग प्रीत लगाई तुझ संग परिणय रचाया है 
तुझे माना अपना ईश्वर तुझमे ही पूरा संसार पाया है 
तेरे लिए ये शृंगार किया तेरे लिए ये महावर लगया है 

अरे अरे ये कैसा विरह संदेश आया है 
कम्बखत ने तुझे मुझसे दूर बुलाया है 
विलाप कर रहा है मन नहीं भाता अन्न का एक भी कण

एक फौजी की अर्धांगिनी हूँ बोध है मुझे 
मेरे से सात वचनों से पहले एक वचन माँ भारती को दिया है आप ने 
मे जानती हूँ माँ की रक्षा को तत्पर मेरे पिया है 

पर क्या करूँ सहम गई हूँ क्योकि 
महावर का रंग अभी छूटा नहीं 
महन्दी अब तक रची काली है 
पिया क्या तेरा अभी जाना जरूरी है 

कोई बात नहीं संजना तुम रण में जाओ भाल तिलक में तेरे करती हूँ 
पर वचन 2 तुझसे लेती हूँ 
वचन दो रण मै दुश्मन को तुम धूल चटा दो गे और दूसरा वचन तुम लोट के जल्दी घर आओगे 


✍🏻हर्ष लाहोटी 
9589333342
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Monday, 24 April 2017

पापा घर आए थे

शीर्षक :- पापा घर आए थे 

कविता :-
पापा बड़े दिनो बाद आज  घर आए थे

साथ मे मेरे लिए खूब खिलौने ओर चॉकलेट लाए थे
माँ के लिए लाल रंग की साड़ी ओर कंगन लाए थे

उस दिन बहूत समय मेने पापा के संग बिताया था
हर छोटी मोटी बात पापा को बतलाया था

दोपहर को साथ पापा के शहर की शारी गलीया घूम आया था
शाम को बड़े गर्व से अपने दोस्तो को अपने पापा से मिलवाया था


बित गया दिन था तभी पापा को एक फोन आया था
उन्हे जल्दी से वापस बुलाया था

पापा ने माँ को बतलाया था
काश्मीर मे फिर दंगाइयों ने दंगा भड़काया था

सेना ने फिर देश को बचाने मोर्चा संभाला था
पापा का साथ बस अब कुछ देर का था सुबह उन्हे मोर्चे पर जाना था

सुबह जल्दी उठ पापा वर्दी पहन तैयार हो रहे थे
मेने उन से पूछा पापा फिर कब लोट कर आओगे
पापा ने कहा बेटा जल्दी फिर से आऊंगा साथ मे फिर से खूब खिलौने लाऊंगा

बसअड्डे पर पापा की बस आज कुछ जल्दी आई थी
मेने ओर माँ ने उन्हे नम आंखो से दी विदाई थी

कुछ दिन बाद एक फोन माँ को आया था
हमे जल्द से जल्द हॉस्पिटल बुलवाया था

गोलियां लगी है पापा को ऐसा उस फोन करने वाले ने बताया था
हम दो‍डते-बिलखते जब हॉस्पिटल को पंहुचे थे
पापा को जख्मी हालत मे बिस्तर लेटे पाया था

कुछ देर बाद डॉक्टर अंकल हमारे पास आए
ओर बताया कि वो पापा को नहीं बचा पाए

माँ का सुहाग उजड़ गया था
ओर मेरे सर से उठा पीता का साया था

कुछ दिनो पहले पापा का माँ को दिया साड़ी कंगन का तोहफा अब उनके लिए बेकार हो गया था

माँ का रो-रोकर हाल बुरा हो गया था
देर शाम पापा का तिरंगे से लपटा शरीर घर मे आया था

माँ ओर मे सारी रात उनके पार्थिव शरीर से लग कर बेठे थे
मुझे ऐसा लग रहा था पापा अभी उठ जाएंगे

ओर मुझे बाजार खिलौने लेने ले कर जाएँगे
सुबह को बहूत से लोग हमसे मिलने आए थे

फिर वो मनहुष घड़ी आगई थी
पापा की करनी अंतिम विदाई थी

साथी जवानो ने पापा की शाहदत को दी अपनी शलामी थी
ओर फिर अंतिम बार मे पापा का चेहरा देख पाया था
उन्हे अग्नि मेने अपने हाथों से दी थीं


फिर उसी अग्नि पे मेने एक शपथ ली थी
 मे भी सेना मै जाऊँगा ओर पापा की तरह ही मातृभूमि के काम आऊंगा


... ✍🏻हर्ष लाहोटी
9589333342

राष्ट्र की हुँकार

शीर्षक :- राष्ट्र की हुँकार


संदर्भ :- प्रस्तुत कविता देश के प्रधान को संबोधित करते हुए लिखी है। जिसमे पूर्व प्रधानमंत्रीयो का उधारण देते हुए प्रधानमंत्री जी से अपील की है कि अब बस बहुत हुआ पाकिस्तान को करारा झटका देना जरूरी है। आशा है कि कविता आपको पसंद आए गी...... 

कविता :-
अलग कश्मीर के नारों से खून खोलता कुछ कदम उठाओ मोदी जी
अब ये मसला खत्म करवा दो मोदी जी

अब पाकिस्तान को करारा झटका दे दो मोदी जी
सर्जिकल स्ट्राइक छोडो अब अटेक करो मोदी जी

आजादी के बाद तुरंत बाद नेहरू, सरदार ने जैसा सबक सिखाया
अब वैसा ही सबक सिखाओ मोदी जी
खंडित हो जाए पूरा पाकिस्तान अब वार करो मोदी जी

शास्त्री जी ने जैसा युद्ध बिगुल था फुका
वैसा बिगुल आप भी फुको मोदी जी
जहाँ शहीद हुए भगत राजगुरु सुखदेव सिंह वो धरती फिर हिंदुस्तान में मिला लो मोदी जी

इंद्रा जी ने बंगाल अज़ाद करा इतिहास रचा
अब एक इतिहास आप भी रचो मोदी जी
अब बालूचो को इंसाफ दिला दो मोदी जी

शांति दूत भेज राजीव जी ने लंका जैसे सुधार दी
अब ऐसे दूत पाकिस्तान भेज दो मोदी जी
अब सिंधप्रांत को अज़ाद करवा दो मोदी जी

अटल के अटल इरादो से जैसे घबराया था पाकिस्तान
अब एक अटल फैसला आप भी लो मोदी जी
पाकिस्तान के कब्जे से कश्मीर अज़ाद करवा दो मोदी जी

🖋हर्ष लाहोटी ✍🏻
9589333342
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माँ-बाप और पैसा

माँ-बाप और पैसा

माँ पैसों का संकट जब घर पर आया था माँ ने हाँथ आहते पर रखे डब्बे  की और बढ़ाया था चुन चुन कर कुछ पैसे जमा किये थे उसने पैसों को निकाल उसे ब...