Wednesday, 26 April 2017

संयुक्त-कूटम्ब



शीर्षक :- संयुक्त-कूटम्ब

संदर्भ :- प्रस्तुत कविता कुछ महीनों पूर्व मित्र के संयुक्त परिवार के हो रहे बंटवारे को देख लिखी है शायद आपको पसंद आए और भारत की शक्ति कही जाने वाली संयुक्त परिवार की प्रथा पुनर्जीवित हो सके लीजिए मां भारती से प्रश्न करती की कविता

कविता :-
की माँ भारती तू ही बता की तेरा वो उज्जवल सबेरा ओर चांदनी शाम कैसे वापस कैसे लौटाऊ
 जहां दादा-दादी ताऊ ताई बापू माई रहते थे मैं वह पुराना कुटुम्ब  कैसे बनाऊं

जो परिवार वट वृक्ष सा हरिहर खुशहाल हुआ करता था
आज पतझड़ के पत्तों सा बिखरा सुखा सा है
मां तू ही बता उस सूखे वृक्ष में नहीं कपोल कैसे प्रस्फुटित कराऊं

जिस धरती पर गूंजते थे वासुधैव कुटुंबकम के नारे
आज वहां कुटुंबों में होते हैं बंटवारे
मां भारती तू ही बता यह बंटवारा रुकती स्वर्ग सम माहौल कैसे बनाऊं

जिस आंगन में बैठ कर सब साथ में भोजन किया करते थे
आज उस आंगन में लंबी दीवारें खड़ी हैं
मां भारती तू ही बता इस कठोर दीवार को चीरती दहाती दरार कहां से लाऊं

जिन बुजुर्गों से एक बच्चे किस्से कहानियां सुना करते थे
आजकल वह घर से दूर आश्रम में रहा करते हैं
मां भारती तू ही बता इन बुजुर्गों की अमर किस्से कहानियां नई पीढ़ी को कैसे मैं सुनाऊं

जिस घर की चारदीवारी पर बच्चे अठखेलियां किया करते थे
आज उस घर की चौखट पर भी सन्नाटा पसरा है
 मां भारती तू ही बता उस सन्नाटे को चीरती नन्हीं मुस्कान कहां से लाऊं

एक समय था जब परिवार में प्रेम उत्साह का माहौल हुआ करता था
पर अब वह समय है जहां द्वेष-राग ओर केवल चीखे है
माँ भारती तू ही बता वह द्वेष-राग भुलाता पुराना समय कैसे लौटाऊ

जहां हर शाम त्यौहारों सी खुशहाल हुआ करती थी
आज त्यौहार की शाम साथ बैठने का समय नहीं
मां भारती तू ही बता दो त्योहारों से लाज भरी शाम कैसे वापस बनाऊं

हर्ष लाहोटी
(9589333342)
(hlahoti20@gmail.com)

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