Wednesday, 26 April 2017

आत्महत्या करता किसान


शीर्षक :- आत्महत्या करता किसान

संदर्भ :- ]भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है तथा मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि परिस्तिथियाँ, समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फँसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएँ की है | इस विषय पर लिख रहा हूँ आशा है आप को पसंद आए.............

कविता :-

 किसान :-

माँ धरती फट गईहै,मानसून की राह तख्ते
फसले जल गई है रवि केतेज निगाह के चलते
घर में खाने को नहीं  बचा है एक भी कण
कर्ज के बोझ से दबा अब कर्जदाता कसने लगे तंज
मवेशी भी अब भूके है खेत खलिहान सब सूखे है
पानी का संकट आन पड़ा है पानी के सभी पोखर सूखे है
मेरा दुःख नहीं देखता कोई नेता 
कोई मिडिया भी नहीं खोज खबर लेता
हल से भी नहीं निकलता अब हल
अब नहीं काम का बखर
अब धक गया हूँ माँ अब हार गया हूँ
अब कोई रास्ता बाकि नहीं है
आत्महत्या के अलावा कोई चारा नहीं है


 भारत माता :-

रुक तू रुक जा आत्म हत्या कोई चारा नहीं
तेरे घर का तेरे अलावा कोई सहारा नहीं
तेरी मौत का दर्द बूढी माँ पत्नी बच्चे नहीं सह पायंगे
अभी तो जैसे तैसे जिन्दा है वे लोग
तेरी मौत से जीते जी मर जायंगे
कुछ दिनों में मौसम करवट बदलेगा
घनघोर बारिश होगी भर जायंगे सारे पोखर
तू माटीपुत्र है हार न मान
जीवन एक रण है उसे डट के लड़
हौसला रख ऐसा की हौसला किस्मत का भी पस्त हो
कमजोर नहीं तू बस इतना याद रखना
मेरी धरती उर्वर है बंजर नहीं ये याद रखना



हर्ष लाहोटी
(9589333342)
(hlahoti20@gmail.com)

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